इलाज, मौत का खाता-बही और बीमा के पैसे का खेल… जामताड़ा के ठगों से भी खतरनाक निकला संभल का ये गैंग

Sambhal Insurance Fraud Jamtara Style: जामताड़ा के शातिर साइबर अपराधियों की कहानियां तो आपने खूब सुनी होंगी. आज आपको देश के ऐसे जामताड़ा की कहानी आपके बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर किसी का भी दिमाग सन्न हो सकता है. ये कहानी है उन लोगों की जो मरने वाले हैं, या मर चुके हैं या फिर मारे जाने वाले हैं. और इन्हीं से शुरू होता है करोड़ों अरबों का वो खेल, जो इस वक्त देश के आधे से ज्यादा राज्यों में खेला जा रहा है. हालांकि इस खेल का पर्दा फाश हुआ है यूपी के संभल में. 

ये देश भर के करीब आधे राज्यों में चल रहे उस लेटेस्ट जामताड़ा की कहानी है, जो सिर्फ खाता खाली कर किसी को कंगाल नहीं बनाते बल्कि एक साथ मरे हए, मरने वाले और मार दिए जाने वाले लोगों की बीमारी और ज़िंदगी दोनों का सौदा कर रहे हैं. बस यूं समझ लीजिए कि साउथ इंडिया के राज्यों, जम्मू-कश्मीर और रिमाचल प्रदेश को छोड़ दें तो देश के बाकी हर राज्य में इस तरह के गैंग मौजूद है जो बीमार लोगों को चुन-चुन कर उनका बीमा करवाते हैं फिर सारा पैसा खुद ही हड़प कर जाते हैं. 

साउथ इंडिया को छोड़… झकझोर देने वाली इस कहानी और खुलासे को जब आप सुने और समझेंगे तो शायद देखने-सुनने के बाद भी आपको यकीन ना आए. यकीन आए भी तो कैसे? कोई कैसे यकीन कर सकता है कि एक मरने जा रहे इंसान, एक मर चुके इंसान और एक मारे जाने वाले इंसान से कुछ क्रिमिनल, सरकारी कर्मचारी, ग्राम प्रधान, बैंक और बीमा कंपनी के मुलाजिम मिल कर कैसे करोड़ों रुपये का खेल कर रहे हैं. तो चलिए जामताड़ा पार्ट टू या संभल जामताड़ा की ये कहानी शुरू करते हैं.

इस कहानी की शुरूआत इसी साल जनवरी की एक ठंड और कोहरे भरी रात में अचानक होती है. कोहरे की रात थी अचानक तुक्के में रोकी गई कार से जो दो लोग मिले उनमें से एक ओंकरेश मिश्रा और दूसरा अमित था. कार से साढ़े ग्यारह लाख कैश और 19 डेबिट कार्ड के अलावा मोबाइल से जो चीज पुलिस को मिली वो हैरान करने वाली थी. मोबाइल में एक लाख से ज्यादा अलग-अलग लोगों की तस्वीरें थीं. 

अब तक पुलिस को समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर ये लोग हैं कौन? क्या करते हैं. इतने सारे डेबिट कार्ड. मोबाइल में ज्यादातर गरीब लोगों की तस्वीरें. मैसेज में बीमा रकम मिल जाने की बातें. संभल में गुजरात बैंक के पासबुक. अब पूछताछ और कागजों की छानबीन के बाद धीरे-धीरे पुलिस को ये बात समझ आने लगी कि मामला बहुत बड़ा है और ये मामला सिर्फ फर्जी बीमा का नहीं बल्कि खूनी बीमा का भी है. 

अब पुलिस ने उन्हीं कागजात के आधार पर उन घरों मे जाकर छानबीन करने का पैसला किया, जहां किसी ना किसी की मौत पर बीमा के पैसे मिले थे. अब एक-एक कर पुलिस उन पतों पर पहुंचती रही और एक-एक कर वो खुलासा होता गया, जिसने खुद पुलिस को हैरान कर दिया. 

संभल के जामताड़ा की जांच की शुरूआत प्रियंका के घर से हुई. प्रियंका के पति दिनेश शर्मा की कैंसर से मौत हो गई थी. मौत से पहले एक रोज कुछ लोग घर आते हैं और दिनेश के इलाज के खर्चे के नाम पर उसका बीमा करवाते हैं. 25 लाख का बीमा. 25 लाख का इंश्योरेंस करवाले के कुछ महीने बाद 30 मार्च 2024 को दिनेश की मौत हो गई. 

अब नॉमिनी बनी प्रियंका का बैंक खाता खुलवाया गया लेकिन बैंक से मिली चेक बुक पर उसके दस्तखत करवा लिए गए, पैन कार्ड, बैंक की पासबुक सब बीमा कराने वालों ने अपने पास रख लिए और तो और बैंक से जिस फोन नंबर पर ट्रांजैक्शन के आते थे. वह भी बदल दिए गए. नतीजा ये हुआ कि इंश्योरेंस की 25 लाख की रकम में 25 पैसे बी प्रियंका को नही मिले.

चंद्रसेन के 35 साल के बेटे दिनेश की दो साल पहले अचानक मौत हो गई. दो साल पहले दिनेश को कुछ लोगों ने बैंक से लोन पर ट्रैक्टर और बाइक दिलवाया थी. फिर एक रोज अचानक बिल्कुल ठीक ठाक दिनेश की रहस्यमयी हालत में मौत हो जाती है. मौत के बाद पता ये चलता है कि चूंकि दिनेश मर चुका लिहाजा बैंक से लोन माफ हो गया. मगर ट्रैक्टर और बाइक उन लोगों को मिली, जिन्होंने दिनेश को लोन दिलाया था.

अब जैसे ही दिनेश और गाडियों के लोन और बीमा के बारे में पुलिस को पता चला तो जांच और आगे बढ़ी. अगला खुलासा दिमाग चकरा देने वाला था. पता चला कि वो गैंग है जो गरीब लोगों को चुनता उनके नाम पर गाड़ियों का लोन करवाता फिर गाड़ी खुद ही चोरी करवाता और सारे पैसे खुद हड़प कर लेता. जांच के बाद अकेले अमरोहा के आसपास से ये इतने सारे ट्रैक्टर जब्त किए गए हैं. 

तफ्तीश और आगे बढ़ी तो त्रिलोक नाम के एक शख्स का केस भी सामने आया. त्रिलोक जून में ही मर गया था. मगर उसकी मौत के कुछ महीने बाद उसके नाम पर बीमा पॉलिसी ली गई. पॉलिसी लेने के बाद दूसरी बार दिल का दौरा पड़वा कर फिर से त्रिलोक को मार दिया गया. यानी कैंसर जैसी बीमारी के मरीज से लेकर मर चुके लोगों तक के बीमा से पैसे कमाए जा रहे थे. यानी कायदे से मुर्दों का भी बीमा हो रहा था.

पर बात सिर्फ इतनी भर नहीं थी. अभी तो सबसे खौफनाक सच सामने आना बाकी था. सच बीमा के नाम पर बीमा पॉलिसी धारकों की हत्या करने का. वो भी खास कर नौजवानों को टारगेट बनाने का. यानी ये गैंग ऐसे हट्टे-कट्टे नौजवानों को टारगेट करता था. जिनकी पॉलिसी भी आराम से हो जाती और प्रीमिय़म भी कम भरना पड़ता था. इसके बाद इन नौजवानों का कत्ल कर उसे रोड एक्सीडेंट में हुई मौत दिखा कर बीमा कंपनी से सारे पैसे वसूले जाते थे.

एक मामले में तो एक सगा भाई तक इस साजिश में शामिल हो गया था. खुद भाई को ई-रिक्शा से धक्का देकर गिराया और जिस तरफ सिर मे चोट लगी उसी तरफ सिर सड़क पर दे मारा और फिर रोड एक्सीडेंट में मौत दिखा कर बीमे का पैसा वसूल लिया.

अब सवाल ये है कि आखिरकार ये सारा धंधा चल कैसे रहा था. तो इसमें ऊपर से नीचे तक ना जाने कितने ही लोगों का चेन काम कर रहा था. सबसे पहले ऐसे लोगों को ढूंढना होता जो किसी गंभीर बीमारी का शिकार हैं और मरने वाले हैं. ये सूचना गैंग तक आशा कायकर्ता और गांव के प्रधान ही गैंग तक पहुंचाते थे.

इसके बाद बारी आती बैंक मैनेजर और बैंक कर्मियों की. जो गैंग के साथ मिलीभगत करके नॉमिनी का खाता खुलवाते थे. डेथ सर्टिफिकेट बनाने वाले सरकारी मुलाजिम से लेकर, ग्राम प्रधान, ग्राम सचिव इन सबके बाद ज़ाहिर है इंश्य़ोरेंस कंपनी की भी मिलीभगत होती थी. कई इंश्योरेंस कंपनी के मुलाजिम भी फिलहाल पुलिस के रडार पर हैं और उनकी भी जांच चल रही है.

ये खेल कितना बड़ा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अभी तक इस संभल जामताड़ा से जुड़े 51 लोग पकड़े जा चुके हैं जबकि केस में 17 अलग-अलग एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं. कायदे से पुलिस की मानें तो ये गैंग एक पूरी पैरलल इकॉनॉमी चला रहा था.

संभल पुलिस ने सिर्फ चार महीने में इतने सारे केस खोल दिए. पर पुलिस की मानें तो आगे ये केस कहां तक जाएगा इसका अंदाजा ही नहीं है. बाकी राज्यों में भी मरने जा रहे, मर चुके या मार दिए जाने वाले लोगों के बीमा के नाम पर यही खेल चल रहा है. यानी खेल करोड़ों का नहीं अरबों का है. सचमुच ये एक पेरलल इकॉनॉमी ही चला रहे हैं.



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