महाराष्ट्र के 19 साल के देवव्रत महेश रेखे ने कुछ ऐसा कर दिखाया है जिसे सुनकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो गया. इन्होंने शुक्ल यजुर्वेद के लगभग 2000 मंत्रों को “दण्डक्रम” नाम की बहुत मुश्किल पद्धति से 50 दिनों तक लगातार बिना रुके पढ़ डाला. विद्वानों का कहना है कि पिछले 200 साल में पहली बार कोई इतनी शुद्ध तरीके से यह काम कर पाया है.
इतिहास में सिर्फ तीन बार ही यह कारनामा हुआ था, और देवव्रत ने सबसे कम समय में इसे बिल्कुल सही-सही पूरा किया. इस खास मौके पर उन्हें 5 लाख रुपये का सोने का कड़ा और 1 लाख 11 हजार 116 रुपये नकद दिए गए.
समारोह में रथयात्रा चौराहे से महमूरगंज तक एक भव्य शोभायात्रा निकाली गई. 500 से अधिक वैदिक विद्यार्थी, पारम्परिक वादक और शंखध्वनि के साथ पूरा शहर एक भव्य वैदिक उत्सव में बदल गया. भक्तों ने मार्ग में पुष्पवर्षा की. कार्यक्रम में शृंगेरी जगद्गुरु श्री श्री भारततीर्थ महासन्निधानम का विशेष आशीर्वाद-संदेश आस्थान विद्वान डॉ. तंगिराला शिवकुमार शर्मा जी के द्वारा पढ़कर सुनाया गया.
दंडक्रम का इतिहास में सिर्फ तीन बार हुआ है प्रदर्शन
विद्वानों ने बताया कि जटिल स्वर-पद्धति एवं उच्चारण-शुद्धता के लिए “वेद पाठन का शिरोमणि” कहे जाने वाले दण्डक्रम का इतिहास में मात्र तीन बार ही प्रदर्शन हुआ है. देवव्रत का पारायण त्रुटिरहित होने के साथ-साथ सबसे कम अवधि में पूर्ण हुआ. यह बात शृंगेरी मठ के आधिकारिक एक्स हैंडल ने भी पोस्ट की है.
पीएम मोदी ने पोस्ट कर दी शुभकामनाएं
वहीं इस मौके पर पीएम मोदी ने X पर एक पोस्ट में कहा- ’19 वर्ष के देवव्रत महेश रेखे जी ने जो उपलब्धि हासिल की है, वो जानकर मन प्रफुल्लित हो गया है. उनकी ये सफलता हमारी आने वाली पीढ़ियों की प्रेरणा बनने वाली है. भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर एक व्यक्ति को ये जानकर अच्छा लगेगा कि श्रीदेवव्रत ने शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा के 2000 मंत्रों वाले ‘दण्डकर्म पारायणम्’ को 50 दिनों तक बिना किसी अवरोध के पूर्ण किया है. इसमें अनेक वैदिक ऋचाएं और पवित्रतम शब्द उल्लेखित हैं, जिन्हें उन्होंने पूर्ण शुद्धता के साथ उच्चारित किया. ये उपलब्धि हमारी गुरु परंपरा का सबसे उत्तम रूप है.
काशी से सांसद के रूप में, मुझे इस बात का गर्व है कि उनकी यह अद्भुत साधना इसी पवित्र धरती पर संपन्न हुई. उनके परिवार, संतों, मुनियों, विद्वानों और देशभर की उन सभी संस्थाओं को मेरा प्रणाम, जिन्होंने इस तपस्या में उन्हें सहयोग दिया.
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