दिल्ली के दंगल की तारीख तय, नतीजों में किसकी होगी जय… बीजेपी को मौका या केजरीवाल लगाएंगे चौका?

दिल्ली में चुनावी ऐलान की दस्तक आ चुकी है. 5 फरवरी को वोटिंग और 8 फरवरी शनिवार को नतीजे आएंगे. दिल्ली समेत देश के राज्यों में फ्रीबीज यानी रेवड़ी वाली राजनीति पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘फ्रीबीज के लिए पैसा है और जजों की सैलरी-पेंशन के लिए नहीं है’. दिल्ली चुनाव के ऐलान के दिन ही एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी आई है. देश में हर चुनाव में कहीं कैश का तो कहीं स्कूटी, कहीं लैपटॉप, कहीं साइकिल तो कहीं मुफ्त, बिजली, पानी वाले वादे होते हैं. ऐसे में आज सुप्रीम कोर्ट को सख्त बात कहनी पड़ी. 

फ्रीबीज पर SC ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘फ्रीबीज के लिए पैसा है और जजों की सैलरी-पेंशन के लिए नहीं है.’ ये टिप्पणी आगे भी याद की जाएगी. सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने जजों की सैलरी में देरी पर राज्य सरकारों की आलोचना की है. अदालत ने कहा कि चुनावी वादों के लिए राज्य के पास पैसा होता है, लेकिन जजों की वेतन संबधी दावों को वित्तीय संकट बताया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली चुनाव में भी किए जा रहे वादों पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘कोई 2100 तो कोई 2500 रुपये देने की बात कर रहा है.’ 

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में ऑल इंडिया जज्स एसोसिएशन ने 2015 में जजों की सैलरी और रिटायरमेंट बेनिफिट्स को लेकर एक याचिका दायर की थी, जिसकी सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने आज ये टिप्पणी की.

बीजेपी के लिए दिल्ली बनी चुनौती

देश में कई सियासी चुनौती वाले राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी जीत चुकी है. बस एक दिल्ली बाकी है, जहां अब 5 फरवरी को 70 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा और 8 फरवरी को नतीजा आएगा. पिछले 26 साल की राजनीति को देखें तो 1999, 2014, 2019, 2024 चार बार देश का लोकसभा चुनाव बीजेपी ने जीत लिया लेकिन दिल्ली में जीत नहीं मिली. दिल्ली की सीमाओं से जुड़े राज्य देखें तो उत्तर प्रदेश में पिछले 26 साल में 3 बार बीजेपी सरकार बना चुकी है, जिसमें से मोदी राज के दौरान दो बार सरकार यूपी में बन चुकी है. 

26 साल के भीतर हरियाणा में बीजेपी लगातार तीसरी बार सरकार बना चुकी है लेकिन दिल्ली का दरवाजा अब तक नहीं खुला है. लगातार तीन बार से बीजेपी दिल्ली लोकसभा की सातों सीट जीत लेती है लेकिन हर बार दस महीने के भीतर दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जीत नहीं मिल पाती. दिल्ली में लगातार छह बार चुनाव हारने के बाद सातवीं बार उसे जीतने के इरादे से बीजेपी मैदान में उतर रही है.

1993 का विधानसभा चुनाव

साल 1993 वो साल जब दिल्ली का पहला और अपना आखिरी विधानसभा चुनाव बीजेपी ने जीता. 49 सीट बीजेपी ने जीती और मदनलाल खुराना दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने. 22 फरवरी 1996 में दिल्ली में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना ने हवाला कारोबारी सुरेंद्र जैन की डायरी में नाम लिखा होने के आरोप पर इस्तीफा दे दिया जबकि बाद में इसी आरोप से मदनलाल खुराना बरी हो गए.

फिर मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा बने लेकिन 12 अक्टूबर 1998 को दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास के बाहर प्याज की महंगाई पर प्रदर्शन होता है. प्याज की कीमत तब 60 रुपए किलो के पार पहुंच गई थी. प्रदर्शन करते लोगों के बीच से डीटीसी की बस में बैठकर सीएम साहिब सिंह वर्मा वहां से निकल गए. प्याज की महंगाई ने चुनाव से दो महीने पहले साहिब सिंह वर्मा को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया.

अगले विधानसभा चुनाव से 50 दिन पहले सुषमा स्वराज ने बीजेपी की पहली सरकार में तीसरी मुख्यमंत्री के तौर पर कुछ दिन कुर्सी संभाली. 1993-1998 के बीच पांच साल में तीन मुख्यमंत्री बनाने वाली बीजेपी अब 26 साल से दिल्ली में अपना मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश में फिर से जुटी है. इसमें पहली कोशिश खुद नरेंद्र मोदी दस साल पहले देश के चुनाव में पहली प्रचंड जीत हासिल करने के बाद कर चुके हैं.

कुछ ही महीनों में बदल जाता है दिल्ली का मूड

2014 लोकसभा चुनाव के दौरान तो दिल्ली में मोदी के नाम की आंधी चलती है. लेकिन लोकसभा चुनाव के दस महीने के भीतर दिल्ली वालों का मूड वैसे ही विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के लिए बदल जाता है, जैसे वो नरेंद्र मोदी के नाम पर लोकसभा में वोट देते हैं. 2014 लोकसभा में दिल्ली में बीजेपी को 46 फीसदी वोट मिलता है, सात लोकसभा सीट मिलती है. लेकिन 2015 विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट घटकर 32% हो जाता है और केजरीवाल की पार्टी का 33 से 54 फीसदी हो जाता है. 

यही 2019-20 में दिखता है जब लोकसभा चुनाव में बीजेपी दिल्ली में 57 प्रतिशत वोट पाती है लेकिन दस महीने के भीतर विधानसभा चुनाव में घटकर 39 फीसदी पर आ जाती है. आम आदमी पार्टी 18 प्रतिशत से 54 प्रतिशत पहुंच जाती है. अब 2024-25 में देखना है कि लोकसभा चुनाव में जिस दिल्ली ने 54 प्रतिशत वोट बीजेपी को दिया है, वो विधानसभा चुनाव में पुराने ट्रेंड पर चलेगी या फिर अबकी बार सियासी इतिहास बदलेगा?

अब तक नहीं खुला दिल्ली का दरवाजा

चुनाव देश का हो या फिर ज्यादातर राज्यों का, ये ट्रेंड पिछले दस साल में खूब देखा गया है कि नरेंद्र मोदी के नाम पर वोटर अलग से बढ़कर बीजेपी को मत देते आए हैं. असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, ओडिशा जैसे राज्य तो इस बात का भी उदाहरण हैं कि दशकों से जहां जीत चखने को नहीं मिली, वहां भी बीजेपी जीतने लगी तो फिर दिल्ली में ऐसा क्या है कि अब तक वो बंद दरवाजा विजय का नहीं खुला? क्या इसकी वजह ये है कि दिल्ली में सीएम पद की दावेदारी पर केजरीवाल का चेहरा लगातार साफ रहता है लेकिन बीजेपी और कांग्रेस दिल्ली में अपना मुख्य दावेदार सामने नहीं रखते?

विधानसभा चुनाव में BJP का फॉर्मूला अपनाती है AAP

2015 में किरण बेदी को अपना सीएम दावेदार बताकर बीजेपी उतरी और नतीजा ये रहा कि सिर्फ तीन सीटों पर सिमट गई. इसके बाद 2020 में फिर बीजेपी ने सीएम पद के लिए अपना चेहरा घोषित नहीं किया. ‘देश बदला, अब दिल्ली बदलो’ का नारा दिया गया. वहीं केजरीवाल पूछते रहे कि बताओ बीजेपी का चेहरा कौन है? दिल्ली ने फिर 2020 में भी केजरीवाल के नाम और चेहरे पर वोट देकर AAP को 62 और बीजेपी को 8 सीटें दीं. कांग्रेस का खाता लगातार दो बाार नहीं खुला. अब तीसरी बार जब दिल्ली में पांच फरवरी को मतदान की तारीख आ चुकी है तो पहले बीजेपी के कैंपेन सॉन्ग पर गौर करिए. 

कैंपेन सॉन्ग में प्रधानमंत्री का ही चेहरा है. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की सोशल मीडिया पोस्ट में विकसित दिल्ली बनाने की अपील है और फिर पीएम मोदी के मार्गदर्शन की ही बात है. वहीं आम आदमी पार्टी ने केजरीवाल के नाम पर फिर से चुनाव में उतरने का प्रचार गीत लॉन्च किया है. दरअसल अरविंद केजरीवाल उसी रणनीति का इस्तेमाल दिल्ली में बीजेपी के खिलाफ करते हैं, जिसका प्रयोग बीजेपी लोकसभा चुनाव में ये पूछकर करती है कि नरेंद्र मोदी के सामने कौन, ये विपक्ष पहले बताए तो और तब जो फायदा मोदी के नाम पर बीजेपी को मिलता है, वैसा ही फायदा आम आदमी पार्टी को अब तक दिल्ली में मिलता आया है. 

CSDS का आंकड़ा बताता है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के काम के मुरीद हर दस में से चार वोटर ने बाद में अरविंद केजरीवाल के नाम पर इसलिए वोट दिया क्योंकि वो मोदी को पीएम के तौर पर पसंद करते हैं लेकिन सीएम के तौर पर केजरीवाल का चेहरा साफ दिखा. जब केजरीवाल दिल्ली के चुनाव में बीजेपी से सीएम पद का नेता पूछते हैं तो प्रधानमंत्री खुद सीधे वार करके आम आदमी पार्टी की नीति, निर्णय और निष्ठा पर सवाल उठाते हैं. 

प्रो-इंन्कंबेसी वोट में कमी और भ्रष्टाचार के आरोप

ये बात सच है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से निकली पार्टी के सबसे बड़े नेताओं पर इस वक्त भ्रष्टाचार के ही आरोप हैं और उनमें से तीन प्रमुख नेता, खुद केजरीवाल, सिसोदिया और संजय सिंह जमानत पर बाहर हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या इस वजह से अबकी बार इतिहास बदल सकता है? जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में CSDS का ये डेटा बताता है कि 2019 लोकसभा में जिन्होंने बीजेपी को वोट दिया था उसमें से एक तिहाई ने विधानसभा में AAP को वोट दिया. 2010 से 2020 के बीच देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव में सर्वे के दौरान प्रो इंनकंबेसी यानी सत्ता समर्थक लहर के सवाल पर सबसे ज्यादा 68 फीसदी ने पिछले चुनाव में ये दावा किया कि वो चाहते थे कि केजरीवाल फिर से जीते. 

Delhi election

इसका मतलब कि वो स्विंग वोटर जो लोकसभा में मोदी को पसंद करके विधानसभा में केजरीवाल के पास चले जाते हैं उन पर गौर करना जरूरी है और इन दो फैक्टर्स के मुकाबले अब सत्ता दस साल की केजरीवाल की हो चुकी है. प्रो इंन्कंबेसी वोट में कमी हो सकती है. करप्शन के आरोप लगे हुए हैं. अब MCD में भी AAP ही सत्ताधारी है यानी जो एज पहले केजरीवाल को मिलता रहा है, क्या कुछ घटा तो फिर दिल्ली में बदलाव हो सकता है? 

AAP को कड़ी टक्कर देने के मूड में कांग्रेस

क्या बीजेपी दिल्ली तभी जीतेगी जब मुकाबला त्रिकोणीय होगा? क्या बीजेपी दो वनवास से ज्यादा वक्त से दिल्ली में सत्ता की दूरी तभी खत्म कर पाएगी जब कांग्रेस मजबूती से लड़ेगी? इन दो सवालों के जवाब में डेटा पर ध्यान दीजिए. 1993 से 2020 तक के चुनाव में दो चुनाव 1993 और 2013 का ऐसा रहा जब बीजेपी का प्रदर्शन सुधरा. 1993 में बीजेपी 49 सीटें जीतकर तभी सरकार बना पाई जब दिल्ली में मुकाबला त्रिकोणीय रहा. 

1993 में तब बीजेपी, कांग्रेस और जनता दल के बीच टक्कर हुई थी. वोट बंटा था और बीजेपी को सत्ता मिली थी. 2013 में फिर बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होने पर सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी बन पाई थी लेकिन इसके बाद कांग्रेस का वोट हमेशा केजरीवाल की पार्टी के पास खिसकता गया. इसके साथ केजरीवाल लगातर चुनाव जीतते रहे. अब दूसरे सवाल का जवाब, क्या कांग्रेस मजबूत होकर चुनाव लड़ेगी तभी आम आदमी पार्टी का वोट-सीट घट सकती है और फायदा बीजेपी को मिल सकता है.

Delhi election

नई दिल्ली सीट पर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को उतारा तो आम आदमी पार्टी सवाल उठाने लगी. कालका जी सीट पर आतिशी के खिलाफ कांग्रेस ने अलका लांबा को उतारा है. जब बीजेपी की तरफ से उम्मीदवार रमेश बिधूड़ी ने विवादित बयान दिया तो आंसू आतिशी के निकले लेकिन काांग्रेस नेता ने आतिशी को भावुकता को भाव नहीं दिया. 

फिर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के 2100 रुपए हर महीने महिलाओं के देने के वादे के मुकाबले कांग्रेस का महिलाओं को 2500 रुपए हर महीने देने का वादा. दिल्ली के चुनाव में ये वो कुछ राजनीतिक लक्षण हैं जो इशारा कर रहे हैं कि अबकी बार कांग्रेस मैदान को यूं ही केजरीवाल के लिए नहीं छोड़ना चाहती है. ऐसे में सवाल यह है कि फायदा किसका होगा.



Source link

Leave a comment